नालंदाः भारत का 1600 साल पुराना विश्वविद्यालय Nalanda University

नालंदा विश्वद्यिालय भारत का एक 1600 वर्ष पुराना विश्वविद्यालय है। जो अपने आकार, यहां पर पढ़ाये जाने वाले विषयों, इसके विशाल पुस्तकालय, जिसमें 90 लाख से अधिक पुस्तकें थीं, के लिए प्रसिद्ध था और फिर किस तरह उस विश्विद्यालय को जलाकर नष्ट कर दिया जाता है, का एक रोचक इतिहास है। जिसे आज जानना आवश्यक है कि भारत में एक महान शिक्षा का केन्द्र था जिसमें विभिन्न देशों से छात्र पढ़ने आते थे और उत्कृष्ट ज्ञान प्राप्त करते थे।

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6/25/20241 मिनट पढ़ें

नालंदाः भारत का 1600 साल पुराना विश्वविद्यालय

हाल ही में नालंदा विश्वविद्यालय तब पुनः चर्चा में आया जब प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने 19 जून को बिहार के राजगीर में प्राचीन खंडहरों के पास नालंदा विश्वविद्यालय के नए परिसर का उद्घाटन किया। उद्घाटन कार्यक्रम में बिहार के मुख्यमंत्री नितीश कुमार , विदेश मंत्री एस जयशंकर समेत 17 देशों के राजदूत उपस्थित थे। आइये जानते हैं नांलदा विश्वविद्यालय के बारे में-

नया परिसर 455 एकड़ में फैला हुआ है। यक एक नेट जीरो ग्रीन परिसर है, जहांपर एक सौर संयत्र, पेयजल उपचार संयत्र, अपशिष्ट जल के पुनः उपयोग के लिए पुनर्चक्रण संयत्र, 100 एकड़ पर जल निकाय और कई पर्यावरणीय अनुकूल सुविधाओं से घिरा हुआ है। इस नये परिसर में 40 कक्षाओं वाले दो शैक्षणिक भवन, 300 सीटों वाले दो सभागार, 550 छात्रों के लिए एक छात्रावास, 2000 सीटों वाला एक एम्फीथिएटर, एक खेल परिसर तथा एक अंतर्राष्ट्रीय केन्द्र है। यह परिसर पारंपरिक एवं आधुनिक वास्तुकला के संयोजन से बनाया गया है।

नालंदा विश्विद्यालय क्यों प्रसिद्ध है? Why is Nalanda so famous?

नालंदा के उत्कर्ष की सात शताब्दियों से भी अधिक समय में दुनिया में इसके जैसा कुछ और नहीं था। यह आक्सफोर्ड विश्वविद्यालय और यूरोप के सबसे पुराने विश्वविद्यालय, बोलोग्रा से, 500 साल से भी अधिक पुराना है। इसे न केवल अपने विशाल आकार के लिए बल्कि एकेडमिक उत्कृष्टता के लिए भी प्रसिद्धि प्राप्त है। इस विश्वविद्यालय में एक विशाल पुस्तकालय था, जिसे ‘‘धर्मगंज’’ के नाम से जाना जाता था, जिसमें 90 लाख पुस्तकें और अनगिनत पाठ रखे हुए थे। यह विशाल पुस्तकालय तीन बहुमंजिला इमारतों से बना हुआ था, जिनका नाम था- रत्नासागर, रत्नोदधि और रत्नरंजक। यह चिकित्सा, आयुर्वेद, गणित, खगोल विज्ञान, व्याकरण, राजनीति, भारतीय दर्शन, युद्ध कला, ललित कला जैसे विषयों और उस समय प्रसिद्ध बौद्ध सिद्धान्तों को सीखने और सिखाने का एक महानतम शिक्षा केन्द्र था। यह एक आवासीय विश्वविद्यालय था, जिसमें चीन, कोरिया, जापान, तिब्बत, मंगोलिया, श्रीलंका और दक्षिण पूर्व एशिया से छात्र पढ़ने आते थे।

यहां पर उस युग के सबसे प्रतिष्ठित बौद्ध गुरूओं जैसे धर्मपाल, शीलभद्र, नागार्जुन द्वारा पढ़ाया जाता था। इसके साथ ही भारतीय गणित के जनक माने जाने वाल आर्यभट्ट द्वारा भी विश्वविद्यालय का नेतृत्व किया गया था। आज के कुलीन विश्वद्यिालयों की तरह यहां भी प्रवेश पाना कठिन था। इच्छुक छात्रों को नालंदा के शीर्ष प्रोफेसरों के साथ कठोर मौखिक साक्षात्कार में भाग लेना पड़ता था। जो भाग्यशाली होते थे, उन्हें भारत के विभिन्न कोनों से आए प्रोफेसरों के एक प्रशिक्षित समूह द्वारा पढ़ाया जाता था। चीनी यात्री ह्वेन सांग के अनुसार यहां पर 10,000 छात्र और 2000 शिक्षक अध्ययन और अध्यापन का कार्य करते थे।

नालंदा विश्विद्यालय का निर्माण किसने किया? Who built nalanda University?

नालंदा विश्विद्यालय की स्थापना 5वीं शताब्दी में 427 ई0 में गुप्त राजवंश के शासनकाल के दौरान कुमारगुप्त प्रथम (शक्रदित्य) द्वारा की गयी थी। कुमारगुप्त प्रथम के संरक्षण और समर्थन ने इस प्रतिष्ठित संस्थान की नींव और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। फिर इसके बाद के शासकों द्वारा भी इसको पर्याप्त अनुदान और समर्थन प्राप्त हुआ, जिसने इसके विकास और प्रतिष्ठा में योगदान दिया, खासकर राजा हर्षवर्द्धन के समय (606-647ई0) में यह विश्वविद्यालय खूब फला-फूला और अपने चरम पर पहुंचा। बाद में पाल राजाओं द्वारा भी इसे पर्याप्त समर्थन प्राप्त था (750-1174 ई0)।

नालंदा विश्विद्यालय का इतिहास History of nalanda University 

नांलदा विश्विद्यालय 427 ई0 से 1197 ई0 तक लगभग 800 वर्षों का उल्लेखनीय इतिहास रखता है। यह दुनिया का पहला आवासीय विश्विद्यालय था। राजा हर्षवर्द्धन के समय भारत आए चीनी बौद्ध भिक्षु और यात्री ह्वेन त्सांग ने नांलदा में अध्ययन किया। जब वे यहां से 645ई0 में चीन लौटे तो वे नालंदा से 657 बौद्ध धर्मग्रंथों को लेकर लौटे। इसके बाद ह्वेन सांग दुनिया के सबसे प्रभावशाली बौद्ध विद्धान बन गये, कुछ ग्रंथों का उन्होंने चीनी भाषा में अनुवाद किया। इसके साथ एक और चीनी यात्री इत्सिंग 670 ई0 में नालंदा आए, उन्होंने बताया कि यहां रहने वाले छात्रों का, आसपास के 200 गांवों से मिलने वाले धन से भरण पोषण होता था।

नालंदा विश्विद्यालय पर हमले

  • पहला-नालंदा महाविहार पर पहला आक्रमण सम्राट समुद्रगुप्त के शासनकाल में 455-470ई0 के बीच हुआ था। हमलावर हूण थे, जो एक मध्य एशियाई जनजातीय समूह था। जो मुख्य रूप से विश्वविद्यालय के मूल्यवान संसाधनों को लूटने की इच्छा से प्रेरित था। बाद में सम्राट स्कंदगुप्त ने विश्वविद्यालय की पुनः स्थापना की। इनके ही शासनकाल में ही प्रसिद्ध नालंदा पुस्तकालय की स्थापना हुयी थी।

  • दूसरा-नालंदा महाविहार पर दूसरा आक्रमण 7वीं शताब्दी में हुआ, जिसकी योजना बंगाल के गौड़ सम्राटों ने बनायी थी। यह आक्रमण कन्नौज के सम्राट हर्षवर्द्धन के साथ राजनीतिक तनाव के कारण किया गया था। हमलें में हुए नुकसान के बाद हर्षवर्द्धन द्वारा विश्वद्यिालय का जीर्णोद्धार किया गया।

  • तीसरा और अंतिम विनाशकारी आक्रमण-1193 ई0 में नालंदा विश्वविद्यालय को कुतुबुद्दीन ऐबक के अधीन कार्यरत एक सेनापति बख्तियार खिलजी द्वारा विनाशकारी हमले का सामना करना पड़ा। विश्वविद्यालय पर पिछले हमलों के विपरीत यह आक्रमण विशेष रूप से घातक था और इसने शिक्षा के केंद्र के रूप में नालंदा की प्रमुखता को समाप्त कर दिया।

     

  • ऐसा कहा जाता है कि एक बार बख्तियार खिलजी बहुत बीमार पड़ गया, इलाज के बाद भी सेहत में कुछ सुधार नहीं हो रहा था, तो किसी ने उसको सलाह दी कि आप नालंदा विश्वविद्यालय  के प्रधानाचार्य राहुल श्री भद्र के पास चले जाएं, वहां आपका इलाज हो सकता है। परंतु खिलजी को किसी गैर मुसलमान से इलाज कराना मंजूर नहीं था, फिर वह इस शर्त पर इलाज के लिए राजी हो गया कि वह राहुल श्री भद्र की दी हुयी कोई भी दवा नहीं खाएगा। एक तरह से उसने श्री भद्र को चुनौती दी कि वह बिना दवा के ठीक करके दिखाएं, श्री भद्र ने उसेे कुरान देते हुए कहा कि इसके कुछ पन्ने रोज पढ़ा करो, खिलजी ऐसा ही करता है और देखते ही देखते उसकी सेहत में सुधार होने लगता है। दरअसल श्री भद्र ने कुरान के पन्नों में दवा लगा दी थी, जिससे पन्ने पलटते समय, थूक लगाने के लिए उसका हाथ बार-बार मुंह में जाता था और इस तरह दवा उसके शरीर में पहुंच गयी और वह पूरी तरह ठीक हो गया। बाद में खिलजी को यह बात पता चलने पर बहुत ज्यादा गुस्सा गया और उसे असुरक्षा और जलन की भावना होती है कि कैसे इनका ज्ञान हमसे श्रेष्ठ है। वह निश्चय करता है कि वह इस ज्ञान के विश्वविद्यालय को नष्ट कर देगा। फिर वह अपनी फौज लेकर नालंदा पर आक्रमण करता है और वहां रहने वाले हजारों बौद्ध भिक्षुओं, गुरूओं को मौत के घाट उतार देता है तथा वहां स्थित विशाल पुस्तकालय में आग लगा देता है, जिसमें 90 लाख पुस्तकों और पांडुलिपियों का एक आश्चर्यजनक संग्रह था। इतिहासकारों का मानना है कि ज्ञान के इस विशाल भंडार को पूरी तरह जलने में तीन महीने लग गये। उन जलती हुयी पांडुलिपियों और ताड़पत्रों में से कुछ मुट्ठी भर ही बच पाये, जिन्हे भागते हुए भिक्षु अपने साथ ले गये। अब उन्हें अमेरिका में "लॉस एंजिल कांउन्टी म्यूजियम ऑफ आर्ट" और तिब्बत में "यारलूम म्यूजियम" में पाया जा सकता है।

    हमले का कारण जो भी रहा हो परंतु इस हमले के दौरान नालंदा विश्वविद्यालय पर जो तबाही हुई वह इतनी गहरी थी कि इसने एक युग के अंत को चिह्नित किया। बाद के शासक संस्थान को, उसके पूर्व गौरव को, बहाल करने में असमर्थ रहे और नालंदा से ज्ञान का प्रवाह एक दुखद और अपरिवर्तनीय रुकावट में बदल गया। यह दुखद घटना मानव ज्ञान के सांस्कृतिक और बौद्धिक विनाश के परिणामों की एक मार्मिक याद दिलाती है।

    अगली छह शताब्दियों में नालंदा धीरे-धीरे गुमनामी में खो गया और दफन हो गया इससे पहले कि 1812 में स्कॉटिश सर्वेक्षक फ्रांसिस बुकानन.हैमिल्टन द्वारा इसकी खोज की गई और बाद में 1861 में सर अलेक्जेंडर कनिंघम द्वारा इसे प्राचीन नालंदा विश्वविद्यालय के रूप में पहचाना गया।

पुननिर्माण

  • भारत के पूर्व राष्ट्रपति डॉ0 एपीजे अब्दुल कलाम ने सर्वप्रथम 2006 में नालंदा विश्वविद्यालय के पुनर्निर्माण का प्रस्ताव बिहार राज्य विधान सभा में अपने संबोधन के दौरान रखा था। उसी समय सिंगापुर सरकार ने भारत सरकार के समक्ष  नालंदा प्रस्ताव प्रस्तुत किया जिसमें नालंदा को एक प्रमुख शैक्षणिक संस्थान के रूप में पुनः स्थापित करने का सुझाव दिया गया।

  • इस परियोजना का एक महत्वपूर्ण कदम तब आगे बढ़ाया गया जब नालंदा विश्वविद्यालय अधिनियम 2010 को भारतीय संसद के दोनों सदनों में पारित किया गया। इस अधिनियम ने नए नालंदा विश्वविद्यालय की स्थापना और संचालन के लिए कानूनी ढांचा प्रदान किया।

  • सितंबर 2014 में नालंदा विश्वविद्यालय ने छात्रों के पहले बैच के लिए अपने दरवाज़े खोले जो लगभग आठ शताब्दियों के अंतराल के बाद एक ऐतिहासिक क्षण था।

  • नालंदा विश्वविद्यालय को भारत सरकार द्वारा  राष्ट्रीय महत्व के संस्थान के रूप में मान्यता दी गई है।

  • 2016 में यूनेस्को द्वारा नालंदा विश्विद्यालय को वर्ल्ड हैरिटेज साइट के रूप में मान्यता दी गयी है।