General election Britain ब्रिटेन में आम चुनाव
ब्रिटेन में 4 जुलाई को हुए आम चुनाव में लेबर पार्टी ने जीत हासिल कर ली। जिसमें उसने कंजरवेटिव पार्टी को बुरी तरह हराया है। इस तरह लेबर पार्टी 14 साल बाद सत्ता में लौट आई है।
Cp lakhera
7/7/20241 मिनट पढ़ें
ब्रिटेन में आम चुनाव
ब्रिटेन में हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए 4 जुलाई को चुनाव हुए। इन चुनावों में लेबर पार्टी ने बड़ी जीत दर्ज कर ली है। लेबर पार्टी को लगभग 411 सीटें मिली हैं और कंजरवेटिव पार्टी 121 सीटें ही जीत पायी। पिछले 14 वर्षों से लगातार सत्ता में काबिज कंजरवेटिव पार्टी की ये बड़ी हार है। इस तरह वामपंथी कही जाने वाली लेबर पार्टी 2010 के बाद पुनः सत्ता में आ गयी है। आइये जानते हैं-
ब्रिटेन में संसदीय ढांचा
भारत की ही तरह ब्रिटेन की संसद दो सदनों से मिलकर बनी है एक है हाउस ऑफ लॉर्ड्स, जिसे अपर हाउस भी कहा जाता है जैसे भारत में राज्यसभा और दूसरा है हाउस ऑफ कॉमन्स, जिसे लोवर हाउस कहा जाता है जैसे भारत में लोकसभा। भारत की ही तरह हाउस ऑफ कॉमन्स के लिए उम्मीदवार सीधे जनता द्वारा चुने जाते हैं और सरकार का संचालन असल में इसी सदन के द्वारा किया जाता है। बस ब्रिटेन में राष्ट्रपति की जगह पर राजा हैं, जिनके लिए कोई चुनाव प्रक्रिया नहीं है यह पद वंशानुगत है। इस समय इस पद पर प्रिंस चार्ल्स तृतीय काबिज हैं।
ब्रिटेन में हाउस ऑफ कामन्स के लिए 650 सीटें निर्धारित हैं। बहुमत के लिए 326 सीटों की आवश्यकता होती है। लेबर पार्टी ने 411 सीटें जीतकर बहुमत का आंकड़ा पार कर लिया है। लेबर पार्टी का नेतृत्व कीर स्टार्मर के द्वारा किया जा रहा था और वही ब्रिटेन के अगले प्रधानमंत्री बनेंगे। कंजरवेटिव पार्टी की ओर से प्रधानमंत्री ऋषि सुनक द्वारा नेतृत्व किया जा रहा था, जिन्होंने हार मिलने के बाद अपने पद से इस्तीफा दे दिया है।
वैसे तो ब्रिटेन में बहुत सारी पार्टियां हैं लेकिन मुख्य रूप से ये दो ही पार्टियां सत्ता में रहती हैं। लेबर पार्टी को वामपंथी पार्टी यानि लेफ्ट विंग पार्टी कहा जाता है और कंजरवेटिव पार्टी को मध्य से दक्षिण यानि सेंटर टू राइट या दक्षिणपंथी पार्टी के रूप में जाना जाता हैै। कंजरवेटिव पार्टी को बोलचाल की भाषा में टोरीज के नाम से भी जाना जाता है। जो कंजरवेटिव और यूनियनिस्ट पार्टी से मिलकर बनी है।
ब्रिटेन, ग्रेट ब्रिटेन, यूके?
ब्रिटेन, इंग्लैण्ड, वेल्स, स्कॉटलैण्ड से मिलकर बनता है जिसे ग्रेट ब्रिटेन भी कहा जाता है। जब इसमें उत्तरी आयलैण्ड को भी शामिल किया जाता है तो इसे यूनाइटेड किंगडम ऑफ ग्रेट ब्रिटेन यानि यूके नाम से जाना जाता है।
यूनाइटेड किंगडम एक संप्रभु राष्ट्र है जो इंग्लैण्ड, स्कॉटलैण्ड, वेल्स और उत्तरी आयरलैण्ड के देशों के बीच एक राजीनीतिक संघ के रूप में मौजूद है, जबकि उनकी अपनी स्थानीय सरकारें और स्वायत्तता है। सामान्य बोलचाल में ब्रिटेन ही कहा जाता है।
कंजरवेटिव की हार का कारण
कम वृद्धि दर- हार के सबसे महत्वपूर्ण कारणों में एक है कि देश कम वृद्धि दर से जूझ रहा है। 2023 में ब्रिटेन में जीडीपी वृद्धि दर 0.1 प्रतिशत रही। यह अन्य प्रमुख विकसित अर्थव्यवस्थाओं की तुलना में बहुत खराब प्रदर्शन रहा है।
मंहगाई-जीवन यापन की लागत, एक बड़ा संकट बनकर उभरा है मुद्रास्फीति 40 साल के उच्चतम स्तर पर पहुंच गयी थी। इसने ब्रिटेन को और गरीब बना दिया है और इसे लेकर लोगों में काफी नाराजगी थी।
सार्वजनिक सेवाएं-सार्वजनिक सेवाएं चरमरा रही हैं राष्ट्रीय स्वास्थ्य सेवा, वित्त पोषण संकट से जूझ रही है। आम नागरिकों को समय पर और सस्ती देखभाल प्राप्त करना कठिन हो रहा है, जिससे कंजरवेटिव के खिलाफ लोगों में गुस्सा बढ़ गया था।
शरणार्थी संकट- खास तौर पर तुर्की, ईरान और अफगानिस्तान से आए शरणार्थियों की वजह से ब्रिटेन में उथल-पुथल मची हुयी है। हजारों शरणार्थी छोटी नावों में सवार होकर इंग्लिश चैनल पार करके इंग्लैण्ड में प्रवेश कर रहे हैं।
च्ूंकि कंजरवेटिव पार्टी पिछले 14 साल से सत्ता में है, इसलिए इन समस्याओं के लिए उसे इसका ज्यादातर दोष मिला है। जनता का एक बड़ा हिस्सा मानता है कि सरकार ने स्वास्थ्य और रक्षा से लेकर इमिग्रेशन और अर्थव्यवस्था तक लगभग हर बड़े मुद्दे को ठीक से नहीं संभाला है।
कंजरवेटिव को कभी अपने अनुभव, स्थिरता और उदारवाद के कारण जाना जाता था। पिछले कुछ सालों में यह पार्टी बुरी तरह से विभाजित हो गई है क्योंकि इसके उदारवादी और उग्रवादी धड़े, प्रभाव के लिए आपस में भिड़ते रहते हैं। इसने बहुत अस्थिरता पैदा की है। पिछले आठ सालों में ब्रिटेन में चार प्रधानमंत्री हुए हैं। इसलिए दो तिहाई मतदाताओं ने माना कि कंजरवेटिव पार्टी फिर से चुने जाने लायक नहीं है।
ऋषि सुनक भी इस समस्या का हिस्सा हैं, उन्होंने खुद को एक अनुभवी प्रशासक के रूप में पेश करने की कोशिश की, जिसके पास देश की प्रमुख समस्याओं को ठीक करने के लिए एक स्पष्ट योजना है। दुर्भाग्य से वे अपनी पार्टी को उस गढ्ढे से बाहर निकालने में कामयाब नहीं रहे जिसमें वह खुद फंस गयी है। विश्लेषकों का कहना है कि सुनक के पास राजनीतिक अनुभव की कमी है।